महर्षि दयानंद सरस्वती लेखनी प्रतियोगिता -05-Mar-2024
महर्षि दयानन्द सरस्वती
महर्षि दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक, महान चिंतक, समाज-सुधारक और देशभक्त थे। महर्षि दयानंद सरस्वती ने बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों को दूर करने में अपना खास योगदान दिया है। उन्होंने वेदों को सर्वोच्च माना और वेदों का प्रमाण देते हुए हिंदू समाज में फैली कुरीतियों का विरोध किया था। वह बचपन से ही सन्यासी और महान विद्वान थे। वह वेदौ के अचूक प्रमाण में विश्वाश रखते थे। उन्होंने कर्म व पुनर्जन्म के सिद्धांत में विश्वाश रखते थे। उन्होंने ब्रह्मचर्य और ईश्वर के प्रति समर्पण सहित ब्रह्मचर्य के वैदिक आदर्शौ पर जोर दिया था।
आर्य समाज के संस्थापक और सामाजिक सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि पर एक ब्राह्राण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम लालजी तिवारी और माता का नाम यशोदाबाई था। महर्षि दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम मूलशंकर था। मूल नक्षत्र में पैदा होने और भगवान शिव में गहरी आस्था रखने के कारण इनके माता-पिता ने इनका नाम मूलशंकर था।
महर्षि दयानंद सरस्वती ने हिंदू, इस्लाम और ईसाई धर्म में फैली बुराईओं और अंधविश्वास का जोरदार खण्डन किया। महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों का प्रचार-प्रसार और महत्ता को लोगों तक पहुंचाने और समझाने के लिए देशभर में भ्रमण किया। इसके अलावा उनका मत था कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे देश में एक भाषा हिंदी भाषा बोली जानी चाहिए। वह अपनी मातृभाषा के समर्थक थे।
उन्होंने 1875 में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने देश की आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने 'स्वराज' का नारा दिया था, जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। महर्षि दयानंद सरस्वती एक महान समाज सुधारक थे।
महर्षि दयानंद ने देश में फैली तमाम तरह की कुरीतियों के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया था। वे जातिवाद और बाल-विवाह के खिलाफ थे। इसके आलावा उन्होने दलित उद्धार और स्त्रियों की शिक्षा के लिए कई तरह के आंदोलन किए।
हमारे देश में महर्षि दयानन्द सरस्वती के नाम अनेक शिक्षण संस्थाएं चल रही है। इनके नाम से रोहतक ( हरियाणा ) में एक विश्वविद्यालय भी है।
दयानंद सरस्वती को अपने जीवन में कई असफल हत्याऔ का सामना करना पड़ा था। जब वह जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह के निमन्त्रण पर जोधपुर गये तब उन्होंने महाराजा को एक नर्तकी के साथ देखा। स्वामी जी ने महाराजा को समझाया। वह नर्तकी इससे स्वामी जी से चिड़ गयी और उसने स्वामीजी के रसोईये जगन्नाथ से उनको दूध में कांच पीसकर दिलवा दिया। जिससे उनकी हालत बिगड गयी। बाद में रसोईया ने उनसे माफी मांगी, स्वामी जी ने उसे मांफ करके वहाँ से दूर भेज दिया। और इसके बाद 30 अक्टूबर 1883 को स्वामी जी का देहांत दीपावली के दिन हुआ था।
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु
नरेश शर्मा " पचौरी "
Mohammed urooj khan
06-Mar-2024 12:43 PM
👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
05-Mar-2024 06:20 PM
👏🏻👌👏
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